Tuesday, September 7, 2010

भक्त और भगवान (हास्य रस)

भक्त एक शिव का चला शिव को मनाने के लिये..
फूल दो और एक लोटा जल चढाने के..
शिवजी के मंदिर जा शिवजी के सन्मुख बैठकर..
स्तुति करने लगा शिव को रिझाने के लिये..
कर चुका कुछ देर फिर हो गया उठ के खड़ा..
हाथ ऊपर को बढाया घंटा बजाने के लिये..
देख सोने का घंटा पड़ गया वह लोभ में..
भूल बैठा वह फूलो को और जल चढाने के..
अब तो घर ले जाऊ इसको यह बड़ा है कीमती..
देर मुझको क्या लगेगी इसको छुपाने के लिये..
खोलने के वास्ते जब हाथ न पंहुचा वहां..
चढ़ गया शिवजी के ऊपर घंटा चुराने के लिये..
देख कर यह उसकी भक्ति हो गए शंकर मगन..
झट हुए शिवलिंग से प्रकट दर्शन दिखाने के लिये..
देख कर अदभुत चरित्र वो थाली लोटा छोड़कर..
हो गया तैयार वह तो भाग जाने के लिये..
बोले शिव शंकर पकड़ उसे तू कहाँ जाता भक्त..
मैं तो आया हु तुझे दर्शन दिखाने के लिये..
भूल के जो एक लोटा जल चढ़ा देता मुझे..
उसके भर देता हूँ मैं खाली खजाने के लिये..
तुने तो काया सकता मुझपे निछावर है किया..
देर फिर कैसे लगाता भक्त आने के लिये..
मन चाह वर दे दिया उस चोर को देखो महान..
भोले बन जाते है भोले कहलाने के लिये..
भक्त एक शिव का चला शिव को मनाने के लिये..

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